अगले कमरे में गौरव को टेबल की दराज से कंडोम के ५ पैक मिले. उसने उन्हें अपनी जेब में रख लिया. मैं सोच रही थी की वो उन कंडोम का करेगा क्या? शायद वो शादीशुदा हो और घर जाकर इस्तेमाल करे.
लगभग सभी दो बिस्तर वाले कमरों में हमें चुदाई का कोई न कोई सुराग ज़रूर मिलता था. गौरव की तेज़ नज़र हर सुराग के पीछे की कहानी खोजने में लगी रहती थी.
वो इस बात का ध्यान रखता था की वो कामवाली के सामने कुछ न बोले. वो केवल मुझे सुनाता था जबकी मई उसको कोई जवाब नहीं दे रही थी. दोपहर तक हमने उस माले के सारे १२ कमरे साफ़ कर दिए और उसके बाद खाना खाने चले गए. दोपहर के बाद हम अगले माले के कमरे साफ़ करने पहुंचे जहाँ हमें पुराने नज़ारे देखने को मिले.
कामवाली सारे कमरे साफ़ करके गंदे कपड़ों की ट्राली हमारे लिए पीछे छोड़ कर चली गई. हम दोनों अपने काम में लगे हुए थे और गौरव की बातें मुझे और गरम किये जा रही थी. वो भी काफी गरम हो चूका था और मुझे उसकी पतलून में टेंट बना नज़र आ रहा था. मैं उस से क्या कहती. वो मुझे ताड़े जा रहा था और हमारा जिस्म एक दुसरे से टकरा गया.
करीब २ घंटे काम करने के बाद मैं एक बिस्तर पर जा कर कोने में बैठ गई. गौरव भी आकर मेरे बगल में बैठ गया. मैं बहुत गरम थी और उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी. वो उस समय मुझे कुछ भी बोलता मैं करने के लिए तैयार हो जाती. लेकिन वो बिना रुके अपनी बात किये जा रहा था. एक-दो बार उसने अपना हाथ मेरी जांघ पर रखा. मैं बस उसकी शक्ल देख रही थी.
मेरा मन कर रहा था की उसका चेहरा पास खींच कर उसके होंठ चूम लूं. लेकिन मैंने किसी तरह अपने आप को काबू में किया. उसके जिस्म की खुशबु मुझ पर जादू जैसा कर रही थी. उसे भी मेरी जिस्म की गर्मी का अहसास हो रहा होगा. उसने अगर ध्यान दिया होगा तो उसे अहसास हुआ होगा की मैं अपनी गीली चूत लिए उसके बगल में चुदने को तैयार बैठी हूँ. आखिर उसने मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मुझे अपनी ओर खींचा.
मैं उसकी आँखों में खोई जा रही थी और उसने अपना चेहरा मुझ पर झुका कर मेरे सर पर चुम्बन जड़ दिया. मेरी तरफ से कोई प्रतिरोध होता न देख कर उसकी हिम्मत बढ़ी और उसने मुझे अपनी बाँहों में भर कर मेरे चुम्बन लेना शुरू कर दिया. मैं भी उसका सहयोग दे रही थी. उसके होंठ मेरे होंठों पर पड़े और उसकी जुबान मेरे मूँह में मेरी जुबान तलाशने लगी.
-- To be continued
लगभग सभी दो बिस्तर वाले कमरों में हमें चुदाई का कोई न कोई सुराग ज़रूर मिलता था. गौरव की तेज़ नज़र हर सुराग के पीछे की कहानी खोजने में लगी रहती थी.
वो इस बात का ध्यान रखता था की वो कामवाली के सामने कुछ न बोले. वो केवल मुझे सुनाता था जबकी मई उसको कोई जवाब नहीं दे रही थी. दोपहर तक हमने उस माले के सारे १२ कमरे साफ़ कर दिए और उसके बाद खाना खाने चले गए. दोपहर के बाद हम अगले माले के कमरे साफ़ करने पहुंचे जहाँ हमें पुराने नज़ारे देखने को मिले.
कामवाली सारे कमरे साफ़ करके गंदे कपड़ों की ट्राली हमारे लिए पीछे छोड़ कर चली गई. हम दोनों अपने काम में लगे हुए थे और गौरव की बातें मुझे और गरम किये जा रही थी. वो भी काफी गरम हो चूका था और मुझे उसकी पतलून में टेंट बना नज़र आ रहा था. मैं उस से क्या कहती. वो मुझे ताड़े जा रहा था और हमारा जिस्म एक दुसरे से टकरा गया.
करीब २ घंटे काम करने के बाद मैं एक बिस्तर पर जा कर कोने में बैठ गई. गौरव भी आकर मेरे बगल में बैठ गया. मैं बहुत गरम थी और उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी. वो उस समय मुझे कुछ भी बोलता मैं करने के लिए तैयार हो जाती. लेकिन वो बिना रुके अपनी बात किये जा रहा था. एक-दो बार उसने अपना हाथ मेरी जांघ पर रखा. मैं बस उसकी शक्ल देख रही थी.
मेरा मन कर रहा था की उसका चेहरा पास खींच कर उसके होंठ चूम लूं. लेकिन मैंने किसी तरह अपने आप को काबू में किया. उसके जिस्म की खुशबु मुझ पर जादू जैसा कर रही थी. उसे भी मेरी जिस्म की गर्मी का अहसास हो रहा होगा. उसने अगर ध्यान दिया होगा तो उसे अहसास हुआ होगा की मैं अपनी गीली चूत लिए उसके बगल में चुदने को तैयार बैठी हूँ. आखिर उसने मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मुझे अपनी ओर खींचा.
मैं उसकी आँखों में खोई जा रही थी और उसने अपना चेहरा मुझ पर झुका कर मेरे सर पर चुम्बन जड़ दिया. मेरी तरफ से कोई प्रतिरोध होता न देख कर उसकी हिम्मत बढ़ी और उसने मुझे अपनी बाँहों में भर कर मेरे चुम्बन लेना शुरू कर दिया. मैं भी उसका सहयोग दे रही थी. उसके होंठ मेरे होंठों पर पड़े और उसकी जुबान मेरे मूँह में मेरी जुबान तलाशने लगी.
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